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जनसँख्या वृद्धि के कारन एवं निवारण

जनसँख्या – हेलो दोस्तों मैं संगीता कुमारी आज के अपने इस आर्टिकल में आप सभी का हार्दिक स्वागत करती हूँ। दोस्तों आज मैं अपने इस आर्टिकल के जरिए सबसे अधिक जनसँख्या किस देश की है इस आर्टिकल के जरिये बताने वाले है जानने के लिए इस आर्टिकल को अंत तक पढ़े What is the population of India? के बारे में बताने वाली हूँ। तो चलिए शुरुआत करते हैं…

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जनसँख्या

जैविक में, विषिस्ट जाति के अंत: जीव प्रतिकृति के संचयन को जनसंख्या कहते हैं; समाजशास्त्र में इसे मानव का संग्रह कहते हैं। जनसँख्या के अन्दर आने वाला सभी व्यक्ति कुछ पहलू एक दुसरे से बांटते हैं जो कि सांख्यिकीय रूप से अलग हो सकता है, लेकिन अगर आमतौर पर देखें तो ये अंतर इतने अस्पष्ट होते हैं कि इनके आधार पर कोई निर्धारण नहीं किया जा सकता.

जनसांख्यिकी का प्रयोग विपणन में विस्तृत रूप से होता है, ये मौद्रिक इकाइयों, जैसे कि खुदराव्यापारी, सशक्त ग्राहक से रेलेटेड हैं।एक्जाम्पल के लिए, एक कॉफी की दुकान है जो कि युवाओं को अपना कस्टमर बनाना चाहता है, ऐसा करने के लिए वो क्षेत्रों की जनसांख्यिकी को देखता है ताकि वो युवा दर्शकों को आकर्षित करने में सफल हो पाए.

जनसँख्या बढ़ने का कारन क्या है

  • जनसँख्या में बढ़ोतरी के निम्न कारन है जो की आप इस आर्टिकल में देख सकते है
  1. जन्म-दर 
  2. मृत्यु दर
  3. प्रवास
  4. जीवन प्रत्याशा
  5. विवाह एवं सन्तान प्राप्ति की अनिवार्यता
  6. अशिक्षा एवं अज्ञानता
  7. बाल विवाह
  8. अंधविश्वास
  9. लडके की चाह मे लडकियाँ पैदा करना
  10. भारत में जनसंख्या वृद्धि के अन्य कारण

जन्म-दर:-
कोई एक देश में एक वर्ष में जनसंख्या के प्रति हजार परसंस में जन्म लेने वाले परिपूर्ण बच्चों की संख्या ‘जन्म-दर’ कहलाती है। जन्म-दर में बढ़ोतरी होने पर जनसंख्या वृद्धि भी ज्यादा होती है, भारत में जन्म-दर सर्वाधिक है। सन् 1911 में जन्म-दर 49.2 व्यक्ति प्रति हजार थी, लेकिन मृत्यु-दर भी 42.6 व्यक्ति प्रति हजार होने के कारण वृद्धि दर कम थी। उच्च जन्म-दर के कारण वृद्धि दर काम हुयी थी।

सन् 1971 की जनगणना में जन्म-दर में मामूली कमी 41.2 व्यक्ति प्रति हजार हुई, लेकिन मृत्यु-दर 42.6 व्यक्ति प्रति हजार से घटकर 19.0 रह गयी इसलिए वृद्धि दर बढ़कर 22.2 प्रतिशत हो गई है।


मृत्यु दर:-
कोई देश में जनसंख्या के प्रति हजार व्यक्तियों पर एक वर्ष में मरने वाले व्यक्तियों की संख्या को मृत्यु दर कहतें हैं। किसी देश की मृत्यु दर जितनी ऊॅंची होगी जनसंख्या वृद्धि दर उतनी ही नीची होगी। भारत में सन् 1921 की जनगणना के अनुसार मृत्यु दर में 47.2 प्रति हजार थी, जो सन् 1981-91 के शताब्दी में काम होकर 11.7 प्रति हजार रह गयी अर्थात् मृत्यु दर में 35.5 प्रति हजार की कमी आयी।

इस कारन : मृत्यु दर घटी तो जनसंख्या दर में बढ़ोतरी हुई। मृत्यु दर में लगातार कमी से भारत में वृद्धों का अनुपात अधिक होगा, जनसंख्या पर अधिक लोड बढ़ जाएगा। जन्म दर तथा मृत्यु दर के अन्तर को प्राकृतिक वृद्धि दर कहा जाता है। मृत्यु दर में कमी के फलस्वरूप जनसंख्या में बढ़ोतरी हो जाती है।

प्रवास:-
जनसंख्या के एक स्थान से दूसरे स्थान पर देशान्तरण को प्रवास कहते हैं। जनसंख्या की बढ़ोतरी में प्रवास का भी परिणाम पड़ता है। बांग्लादेश के सीमा से लगे राज्यों में जनसंख्या बढ़ोतरी का एक बड़ा कारण प्रवास है त्रिपुरा, मेघालय, असम के जनसंख्या वृद्धि में बांग्लादेश से आए प्रवासी प्रभावशाली योगदान दे रहे हैं, क्योंकि इन राज्यों में जन्म-दर वृद्धि दर से कम है। ऐसा माना जाता है कि भारत की आबादी में लगभग 1 प्रतिशत वृद्धि दर में प्रवास मुख्य रूप से जिम्मेदार है।

जीवन प्रत्याशा:-
जन्म-दर एवं मृत्यु-दर के अन्तर को स्वाभाविक वृद्धि दर कहा जाता है। मृत्यु-दर में कमी के कारण जीवन सम्भावना में बढ़ोत्तरी होती है। सन् 1921 में भारत में जीवन सम्भावना 20 वर्ष थी जो आज बढ़कर 63 वर्ष हो गया है, जो वृद्धि दर में शीघ्र परिणाम परता है। जीवन प्रत्याशा में वृद्धि से अकार्य जनसंख्या में वृद्धि होती है।

विवाह एवं सन्तान प्राप्ति की अनिवार्यता:-
हमारे यहां सभी युवक व युवतियों के विवाह की प्रथा है और साथ ही सन्तान उत्पत्ति को धार्मिक एवं सामाजिक दृष्टि से श्रद्धापूर्वक माना जाता है।

अशिक्षा एवं अज्ञानता:-
आज भी हमारे देश में ज्यादा-ज्यादा लोग बिना पढ़े लिखे है। अशिक्षा के कारण अज्ञानता का अंधकार फैला हुआ है। कम पढे लिखे होने के कारण लोगों को परिवार योजना के उपायों की ठीक से जानकारी नहीं हो पाती है। लोग आज भी बच्चों को ऊपर वाले की देन मानते है। अज्ञानता के कारण लोगों के मन में अंधविश्वास भरा है।

बाल विवाह:-
आज भी हमारे देश में बाल विवाह तथा कम उम्र में विवाह जैसी कुप्रथाएँ प्रचलित है। जल्दी शादी होने के कारण किशोर जल्दी माँ बाप बन जाते है। इससे बच्चे अधिक पैदा होते है। उनके स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पडता है। कम उम्र में विवाहित होने वाले अधिकांश युवा आर्थिक रूप से दूसरों पर निर्भर होते है तथा बच्चे पैदा कर अन्य आश्रितो की संख्या बढाते है। जिसके कारन कमाने वालो की संख्या कम और खाने वालो की संख्या अधिक हो जाती है। अत: सरकार ने 18 वर्ष से कम उम्र में लडकियों की तथा 21 वर्ष से कम उम्र मे लडको की शादी कानूनन अपराध घोषित किया है।

अंधविश्वास:-
आज भी अधिकांश लोगों का मानना है कि बच्चे ईश्वर की देन है ईश्वर की इच्छा को न मानने से वे नाराज हो जाएंगे। कुछ लोगों का मानना है कि संतान अधिक होने से काम में हाथ बंटाते है जिससे उन्हे बुढापे में आराम मिलेगा। परिवार योजना के उपायों को मानना वे ईश्वर की इच्छा के विरोध मानते है। इन प्रचलित अंधविश्वास से जनसंख्या में नियंत्रण पाना असंभव सा लगता है।

लडके की चाह मे लडकियाँ पैदा करना:-
लोग सोचते है कि लडका ही पिता की जायदाद का असली उत्तराधिकार होता है तथा बेटा ही अंतिम संस्कार तक साथ रहता है और बेटियाँ पराई होती है। इससे लडके लडकियों में भेद-भाव को बढावा मिलता है। बेटे की चाह में लकड़ियाँ पैदा करते चले जाते है। लडके लडकियो के पालन पोषण में भी भेद-भाव किया जाता है। व्यवहार से लेकर खानपान में असमानता पाई जाती है।

फलस्वरूप लडकियाँ युवावस्था या बुढ़ापे में रोगों के शिकार हो जाती है। इसके अलावा कई पिछडे इलाको तथा कम पढे लिखे लोगों के बीच मनबहलाव की कमी के कारण वे कामवासना को ही एकमात्र संतुष्टि तथा मनोरंजन का साधन समझते है जिससे जनसंख्या बढती है।

जनसंख्या वृद्धि के कुछ कारण:-
भारत में जनसंख्या में बढ़ोतरी के अन्य भी कई कारण हैं, जैसे- संयुक्त परिवार प्रथा, गरीबी, निम्न जीवन-स्तर व अशिक्षा आदि ऐसे अनेक कारण हैं जो जनसंख्या की वृद्धि में मददगार हो रहे हैं।

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Population

जनसँख्या निवारण कैसे करे

  • जनसँख्या में नियंत्रण के करने का बहुत सी उपाय है जो की आप निचे देख सकते है –
  1. शिक्षा का फैलाव
  2. परिवार योजना
  3. विवाह की आयु में वृद्धि करना
  4. प्रजनन की सीमा अवधि निर्धारण
  5. सामाजिक सुरक्षा
  6. सन्तति सुधार कार्यक्रम
  7. जीवन-स्तर को ऊॅंचा उठाने का प्रयास
  8. स्वास्थ्य सेवा व मनोरजन के साधन
  9. जनसंख्या शिक्षा
  10. महिला शिक्षा
  11. यौन शिक्षा
  12. जन संपर्क
  13. जनसंचार माध्यमों द्वारा प्रचार प्रसार


शिक्षा का फैलाव:- भारत की 80 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण इलाको में निवास करती है। जनसंख्या में यह तीव्र वृद्धि देश के लिए अपवाद बनती जा रही है। फलस्वरूप गरीबी, बेराजगारी एवं महंगाई इत्यादि समस्यायें दिनों दिन बढ़ती जा रही है। गांवों में शिक्षा की कमी और अज्ञानता के कारण तथा नगरों में गंदी बस्तियों के लोगों में शिक्षा की कमी के कारण जनसंख्या नियंत्रण का कोई भी योजना कामयाब नहीं हो पा रहा है। इसीलिए लोगों में टीचर्स प्रसार कर रही है की जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण किया जा सकता है।

परिवार योजना:-जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए परिजन योजना के अलग-अलग योजनाओ का प्रचार-प्रसार बहुत ही जरूरी है। परिजन योजना कार्यक्रम को जन संचार-व्यवस्था का रूप दिया जाना चाहिए।

विवाह की आयु में वृद्धि करना:- हमारे देश में आज भी बाल विवाह की प्रथा है। अत: बाल-विवाह प्रभावी वैध रोक लगायी जानी चाहिए। साथ ही लड़के-लडकियों की विवाह की आयु को भी बढ़ाई जानी चाहिए।

प्रजनन की सीमा अवधि निर्धारण:- परिवार, समाज और राष्ट्र के हित में संतान की सीमा निर्धारण करना बहुत ही जरुरी है। जनसंख्या विस्फोट से बचने के लिए परस्पर दम्पत्ति के वंशक की संख्या1 या 2 करना बहुत जरुरी है। चीन में इसी निवारण को अपनाकर जनसंख्या वृद्धि में नियंत्रण में सफलता प्राप्त हो गया है।

सामाजिक सुरक्षा:- हमारे देश में वृद्धावस्था, बेरोजगारी एवं संयोग से हिफाजत नहीं होने के कारण लोग बड़े परिवार की इच्छा रखते हैं। इसीलिए यहॉं सामाजिक सुरक्षा के योजना में बेरोजगारी भत्ता, वृद्धावस्था, पेंशन, वृद्धा-आश्रम चलाकर लोगों में सुरक्षा की भावना जागृत की जाय।


सन्तति सुधार कार्यक्रम:- जनसंख्या की वृद्धि को रोकने के लिए सन्तति सुधार कार्यक्रमों को भीअपनाया जाना चाहिए। संक्रामक रोगों से ग्रस्त व्यक्तियों के विवाह और प्रजनन पर रोक लगाया जाये।

जीवन-स्तर को ऊॅंचा उठाने का प्रयास:- देश में कृषि एवं व्यावसायिक निर्माण को बढ़ाकर लोगों के जीवन स्तर को ऊॅंचा उठाने का प्रयास किया जाना चाहिए। जीवन स्तर के ऊॅंचा उठ जाने पर लोग स्वयं ही छोटे परिवार के महत्व को समझने लग जायेंगे।

स्वास्थ्य सेवा व मनोरजन के साधन:- देश के नागरिकों की कार्य कुशलता एवं मौद्रिक उत्पति की योग्यता को बरकरार रखने के लिए प्रशिद्ध एवं घरेलू स्वास्थ्य अनुकूलता एवं सफाई पर ध्यान देना बहुत ही जरुरी है। डाक्टर, नर्स एवं मलकिनी इत्यादि की संख्या में बढ़ोतरी किया जाना चाहिए। ग्रामीणों को स्वस्त जीवन व्यतीत करने तथा मनोरंजन के लिए पर्याप्त साधन मौजूद कराया जाना चाहिए और इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि गॉंवों में स्त्री पुरूषों के लिए एकमात्र मनोरंजन का साधन न रहे।

जनसंख्या शिक्षा:- ये एक ऐसा योजना है जो सरकार तथा स्वयं सेवी संगठनो द्वारा अपने अपने स्तर पर चलाया जा रहा है। उसके माध्यम से लोगो की बढती हुई जनसंख्या से उत्पन्न मुस्किले दुष्प्रभावो, खान पान, बीमारी, स्वास्थ्य संबंधी बाधा, विवाह योग्य सही उम्र आदि की जानकारी दी जाती है। अब तो जनसंख्या शिक्षा बलपूर्वक कर दी गई है। ताकि युवाओ में जनसंख्या के प्रति जागरूकता आ सके। लोगो को जागरूक बनाकर जनसंख्या वृद्धि को कम किया जा सकता है।


परिवार नियोजन संबंधी शिक्षा:- लोगो को परिवार नियोजन की जानकारी देकर जनसंख्या वृद्धि में नियंत्रण किया जा सकता है। गर्भ निरोधकों के प्रयोग से जिसमें निरोध, कापरटी, नसबंदी, गर्भ निरोधको की गोलियों का सेवन इत्यादि की जानकारी देकर तथा इनका प्रचार, प्रसार करके जनसंख्या वृद्धि मे कमी लाया जा सकता है।

महिला शिक्षा:- हमारे देश में आज भी महिलाओं की शिक्षा का स्तर पुरूषों की अपेक्षा बहुत ही कम है। महिलाओं के शिक्षित न होने के कारण व जनसंख्या वृद्धि के दृष्परिणामों को नही समझ पाती। वे अपने खान पान पर भी ध्यान नहीं देपाती तथा जनसंख्या नियंत्रण में अपना योगदान नहीं दे पाती। जिन क्षेत्रों मे महिलाओं का शिक्षा स्तर कम है। वह पर जनसंख्या वृद्धि दर अधिक है। पढ़ी लिखी महिलाएं जनसंख्या नियंत्रण के प्रति जागरूक होती है।इस तरह महिलाएं शिक्षित होंगी तो वे अपने बच्चों के खानपान, पोषण तथा स्वास्थ्य पर भी ध्यान देंगी तथा जनसंख्या पर भी नियंत्रण होगा और एक स्वस्थ समाज का निर्माण होगा।

यौन शिक्षा:- आज भी हमारे समाज में यौन संबंधों को छिपाने की चीज समझा ज्ञाता है। लोग यौन संबंधी बातें तथा उससे जुड़ी समस्याओं पर खुलकर बातें करने से संकोच करते है। यौन संबंधी जानकारी न होने के कारण लोग असमय तथा अधिक बच्चे पैदा करते है। यौन संबंधी जानकारी से जनसंख्या वृद्धि को रोकने में सहायता मिल सकती है।

जन संपर्क:- कई स्वयं सेवी संगठन भी लोगो के बीच जाकर उनसे बातचीत कर जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न समस्याओं की जानकारी देते हैं। उन्हें नुक्कड नाटको, सांस्कृतिक कार्यक्रमों तथा तरह-तरह की प्रतियोगिताएं कराकर जनसंख्या वृद्धि के कारणों तथा समस्याओं की जानकारी देकर उन्हे जागरूक बनाते है।


जनसंचार माध्यमों द्वारा प्रचार प्रसार:- सरकार समाचार पत्रो, पत्रिकाओं, रेडियों, टेलीविजन पर परिवार रोजगार तथा जनसंख्या शिक्षण संबंधी कार्यक्रमों को बढ़ावा दे रही है। इसी तरह जनसंख्या वृद्धि से होने वाली समस्याओं तथा उन्हें रोकने के उपयों का प्रचार प्रसार भी करती है।

उपर्युक्त उपायों के अलावा अन्योन्य उपायों से जन्मदर में कमी करना विवाह की अनिवार्ता को ढीला बनाना, स्त्री शिक्षा, स्त्रियों के आर्थिक स्वावलम्बन पर जोर देना, गर्भपात एवं बन्ध्याकरण की विश्वसनीय सुविधाओं का विस्तार करना, अधिक सन्तान उत्पन्न करने वाले जोड़ा को सरकारी सुविधाओं से वंचित करना एक या दो बच्चे पैदा करने वाले जोड़ा को अलग-अलग शासकीय लाभ दिया जाना चाहिए। 1970 के बाद चीन ने ‘एक जोड़ा एक सन्तान’ का नारा देकर अपनी बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित करने में सफलता प्राप्त की है।

जनसँख्या वृद्धि के कारन एवं निवारण

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